
Khajur Farming
खजूर, इस धरती पर सबसे पुराना वृक्ष है, जिसकी खेती की जाती है। यह कैल्शियम, शूगर, आयरन और पोटाशियम का उच्च स्त्रोत है। यह कई सामाजिक और धार्मिक त्योहारों में प्रयोग किए जाते हैं। इसके अलावा कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं, जैसे कब्ज से राहत, हृदय रोग को कम करना, दस्त को नियंत्रित करना और गर्भावस्था में सहायता करना। इसे विभिन्न तरह के उत्पाद जैसे चटनी, आचार, जैम, जूस और अन्य बेकरी उत्पाद बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। खजूर की खेती मुख्य रूप से अरब देशों, इज़रायल और अफ्रीका में की जाती है। इरान खजूर का मुख्य उत्पादक और निर्यातक है। पिछले दशकों में भारतीय प्रशासन ने काफी प्रयास किए हैं, जिसके तहत खजूर के खेती क्षेत्र में काफी वृद्धि हुई है। भारत में राजस्थान, गुजरात, तामिलनाडू और केरला खजूर के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।
इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी पैदावार और अच्छी उपज के लिए अच्छे निकास वाली, गहरी रेतली दोमट मिट्टी जिसकी पी एच 7-8 हो, उचित रहती है। जिस मिट्टी की 2 मीटर नीचे तक सतह सख्त हो, उन मिट्टी में उगाने से परहेज़ करें। क्षारीय और नमक वाली मिट्टी भी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है लेकिन इनमें खजूर की कम पैदावार होती है।
प्रसिद्ध किस्में और पैदावार
Barhee: यह किस्म 2016 में विकसित की गई है। यह देरी से पकने वाली किस्म है जो कि मध्य अगस्त में पकती है। इसका वृक्ष कद में लंबा और तेजी से वृद्धि करता है। यह अंडाकार आकार के फल पैदा करता है जो कि रंग में पीले होते हैं और इनका औसतन भार 12.2 ग्राम होता है। फल में टी एस एस की मात्रा 25.4 प्रतिशत होती है। फल विकसित होने की पहली अवस्था में इसकी औसतन पैदावार 68.6 किलो प्रति वृक्ष होती है।
Hillawi: यह किस्म 2016 में विकसित की गई है। यह अगेती से पकने वाली किस्म है जो कि मध्य जुलाई में पकती है। इसके फल लंबाकार आकार के होते हैं जो कि रंग में हल्के संतरी रंग के और छिल्का हल्के पीले रंग का होता है। फल में टी एस एस की मात्रा 29.6 प्रतिशत होती है और फल का औसतन भार 15.2 ग्राम होता है। फल विकसित होने की पहली अवस्था में इसकी औसतन पैदावार 92.6 किलो प्रति वृक्ष होती है।
रोपाई के चार से पांच साल बाद, खजूर का वृक्ष पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता है। फल की तुड़ाई की तीन अवस्थाएं होती हैं पहली, जब फल पकने की अवस्था में होते हैं।जब फल ताजे होते हैं। दूसरी, जब फल नर्म और पके हुए होते हैं और तीसरी सूखी अवस्था जब फल सूख (छुहारा) जाते हैं। मॉनसून का मौसम शुरू होने से पहले तुड़ाई पूरी कर लें।
राजस्थान में इजराइल जैसी खेती
राजस्थान में 8 वेराइटी के खजूर की खेती हो रही है। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने के बाद खेती की शुरुआत की गई। टिशू कल्चर से कई वेराइटी के खजूर पैदा किए जा रहे हैं। राजस्थान के वातावरण में वैसे ही खेती हो रही है जैसे इजराइल, जॉर्डन वैली या चाइना ट्रंच में की जाती है। मीठा पानी का टीडीएस 70-120 के बीच होता है, लेकिन 1500-2000 टीडीएस वाले पानी में भी खजूर की खेती हो सकती है। सिंचाई और प्राकृतिक खाद के इस्तेमाल से हो रहा खजूर उत्पादन उत्साह बढ़ाने वाला है।
(Date Palm) एक ऐसा फल है, जो जमीन से काफी ऊपर लगता है. आमतौर पर इसकी खेती रेगिस्तानी इलाकों में होती है. लेकिन अगर आप चाहें तो आसपास कहीं खेत खरीदकर या किराये पर लेकर भी खजूर की खेती कर सकते हैं. ऐसा करने से खजूर के प्रत्येक पेड़ से आप सालभर में 20हजार रुपये तक कमाई कर सकते हैं.
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